"मन चाहिए / रमानाथ अवस्थी" के अवतरणों में अंतर
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हर दर्द झूठा लग रहा सहकर मजा आता नहीं | हर दर्द झूठा लग रहा सहकर मजा आता नहीं | ||
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सम्भोग से सन्यास तक | सम्भोग से सन्यास तक | ||
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आवास से आकाश तक | आवास से आकाश तक | ||
+ | भटके हुये इन्सान को कुछ और जीवन चाहिए ! | ||
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− | + | कोई न हो जब साथ तो एकान्त को आवाज़ दें ! | |
+ | इस पार क्या उस पार क्या ! | ||
+ | पतवार क्या मँझधार क्या !! | ||
+ | हर प्यास को जो दे डुबा वह एक सावन चाहिए ! | ||
+ | कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए ! | ||
− | + | कैसे जियें कैसे मरें यह तो पुरानी बात है ! | |
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बदनामियों से क्यों डरें | बदनामियों से क्यों डरें | ||
+ | जिसमें नियम-संयम न हो वह प्यार का क्षण चाहिए! | ||
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21:15, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
थककर बैठो नहीं प्रतीक्षा कर रहा कोई कहीं
हारे नहीं जब हौसले
तब कम हुये सब फासले
दूरी कहीं कोई नहीं केवल समर्पण चाहिए !
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
हर दर्द झूठा लग रहा सहकर मजा आता नहीं
आँसू वही आँखें वही
कुछ है ग़लत कुछ है सही
जिसमें नया कुछ दिख सके वह एक दर्पण चाहिए !
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
राहें पुरानी पड़ गईं आख़िर मुसाफ़िर क्या करे !
सम्भोग से सन्यास तक
आवास से आकाश तक
भटके हुये इन्सान को कुछ और जीवन चाहिए !
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
कोई न हो जब साथ तो एकान्त को आवाज़ दें !
इस पार क्या उस पार क्या !
पतवार क्या मँझधार क्या !!
हर प्यास को जो दे डुबा वह एक सावन चाहिए !
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
कैसे जियें कैसे मरें यह तो पुरानी बात है !
जो कर सकें आओ करें
बदनामियों से क्यों डरें
जिसमें नियम-संयम न हो वह प्यार का क्षण चाहिए!
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !