"कसक / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>कोनी हां, कोनी आ भूख भाषा री कोनी कोनी हां, कोनी कोई कसक कोनी काळ…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | < | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=साँवर दइया | ||
+ | |संग्रह=हुवै रंग हजार / साँवर दइया | ||
+ | }} | ||
+ | [[Category:मूल राजस्थानी भाषा]] | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <Poem> | ||
+ | कोनी | ||
हां, कोनी | हां, कोनी | ||
आ भूख भाषा री कोनी | आ भूख भाषा री कोनी |
22:45, 25 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
कोनी
हां, कोनी
आ भूख भाषा री कोनी
कोनी
हां, कोनी
कोई कसक कोनी काळजै में
कीं रचण खातर
है
हां,है
खुद नै थरपण री भूख
है
हां,है
किणी पद-पुरस्कार खातर
ईसकै री आग
जठै-कठै लाधै मौको
उछाळै एक-दूजै री पाग
गिणीजतै लोगां में पूजीजता लोग
आरती रा बोल बांचणियां नै
कंठै करावै कोकशास्त्र
जमीन सूं जुड़ जुड़ां सोधणियां नै
सिखावै आभै कानी थूकणो
संघे शक्ति कलियुगे रै नांव
ठौड़-ठौड़ थरपै मतलब रा मठ
बेच खाया
काण-कायदा-लाज
पग-पग माथै मंड मेल्यो है
अखाड़ो आज
अबै अठै
सरजण रा सुर क्यूं सोधै
ओ म्हारा बावळा मन !
उठ !
अंवेर आखर
जोड़ आंनै कीं रच
अणरच्यो हुवै जिको आज तांई
रचण रो मौड़ थारी कलम रै माथै
कसक है कोई जे थारै काळजै में
थारी पीड़ नै दै रूप कोई नुंवो ।