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अंदोह से हुई न रिहाई तमाम शब / मीर तक़ी 'मीर'
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हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:50, 29 जून 2009 का अवतरण
अंदोह1 से हुई न रिहाई तमाम शब2।
मुझ दिल-जले को नींद न आई तमाम शब।
[1. अंदोह=दुख; 2. तमाम शब=पूरी रात]
चमक चली गई थी सितारों की सुबह तक,
की आस्माँ से दीदा-बराई तमाम शब।
जब मैंने शुरू क़िस्सा किया आँखें खोल दीं,
यक़ीनी3 थी मुझ को चश्म-नुमाई तमाम शब।
[3. यक़ीनी= अनुशासनहीनता]
वक़्त-ए-सियाह4 ने देर में कल यावरी5 सी की,
थी दुश्मनों से इन की लड़ाई तमाम शब।
[4. सियाह=दर्क; 5. यावरी= मदद]
तारे से तेरी पलकों पे क़तरे अश्क के,
दे रहे हैं "मीर" दिखाई तमाम शब।