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इतियास (3) / भंवर भादाणी

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थांरी मैमावां
अपरम्पार
थारै सौ-सौ
लम्बा हाथ।
थांने घमंडीजणो चाहीजै
कै थां जिका करया
कारनामा
बै बणग्या इतियास।
म्है तो हां ई कांई
किसै बाग री मूळी !
थांरी महिमावां सारू
रचीज्या
वैद
गीता पुराण
अर थां खातर नई
म्हानै जरू जकड़
राखण नै
बटीज्या
सिरीपूज मनु-संहितावां
रा
रंढू
थे भी खूब हो
माननी पड़ै थांरी मैमावां
आ थांरी ई है खसूसी
कै - थै
बणाय दो लूट नै
कानून।
म्हानै तो थांरा
पीवणा चाहीजै
घोळ घोळ‘र
पग !
थांरा पग
पग नीं है
पूजनीक पगलिया है
थांरा पगलिया ई नीं
उण री धूड़ ई है
पूजणजोग
जिके सूं भाठो
बणै लुगाई।
थे भी खुब हो
ऐके कांनी
लुक‘र लूंटो
सिंदूर
अर दूजै कांनी
तारो-भवपार।
इण खातर
खाली म्है ई नीं
म्हारै जिसा
करोड़ों-करोड़
गावै है थांरा भागवत !
ओ थांरो ई
है जादू
कै थे ऐकै सागै
नचाय सकौ
काठ री पूतळयां
थे जाणो
नूंवां-नूंवां
रस्ता बणावणा
जिकै में
आदमी भटक सकै।
आदमी रौ भटकाव
थांरो है जीवण
थांरो परकोटो है।
पण -
थे ओ भी तो जाणो
कै जाणै है
आदमी
थांरो इतियास
अर-आ बात
सोळै आना खरी
कै जकै जाण लियो
इतियास
जाण लै बोई
पसवाड़ा फोरणा!