भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फुटकर शेर / त्रिलोकचन्द महरूम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:40, 8 जनवरी 2011 का अवतरण
1.
जो तू ग़मख़्वार<ref>हमदर्द, सहानुभूति जताने वाला, दुख-दर्द बाँटने वाला</ref> हो जाये तो ग़म क्या,
ज़माना क्या, ज़माने के सितम क्या ।
2.
ख़लिश<ref>चुभन, टीस, चिन्ता, फ़िक्र, उलझन</ref> ने दिल को मेरे कुछ मज़ा दिया ऐसा,
कि जमा करता हूँ मैं ख़ार<ref>काँटा</ref> आशियाँ के लिए ।
3.
इन बेनियाजियों<ref>उपेक्षा, अनदेखी</ref> पै दिल है रहीने-शौक़,<ref>अपनी चाहत को गिरवी रखना</ref>
क्या जाने इसको क्या हो जो परवा करे कोई।
4.
दुनिया में न कर किसी से बेइंसाफ़ी,
दुनिया से मगर न रख उम्मीदे-इन्साफ़ ।
शब्दार्थ
<references/>