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पत्ता वह मैं हूँ / केदारनाथ अग्रवाल
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पत्ता जो टूट गया पेड़ से,
गिरकर जो पृथ्वी पर पड़ा रहा
थोड़े दिन हरा रहा,
लेकिन फिर सूख गया,
पत्ता वह मैं हूँ।