भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हथियार / श्याम महर्षि

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:47, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बम, लाठ्यां, हथगोळा
अर बंदूकां
उग आई है
म्हारै देस
अबै तो कठैई
लांचर अर छोटी तोपां री
खेत ई
लुक्यां छिप्यां
हुवणै लागगी है

इण फसल नै
सींच रैया बै लोग
जनता रै खून सूं
जिका
इण देश रा हेताळू नीं,
राष्ट्रीयता अर मिनखपणै रा
सांसा पड़ग्या म्हारै देस

बे फकत हथियार उगावै
अर उण फसल नै
बांट देवै
आप सरीखा हाथां मांय,
सोनल धरती नै
डूबावै रगत समुन्दर मांय
बै लोग।