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बुढ़ापा आने तक / चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव
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उसने जाना
घर की सांकल खटखटाती
दुकानों की मंशा को
उसने पहचाना
पैकेटों-ठण्डी बोतलों में बंद
ज़हरीली गंध को
समझा उसने
सिक्कों की खनखनाहट में छिपे
ध्वनि- संकेतों को
आखिर भॉंप ही लिया उसने
चकाचौंध कर देने वाली
रोशनियों का मर्म
लेकिन....
तब तक वह
बूढ़ा हो चला था