भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समय के उस पार / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:33, 15 अप्रैल 2011 का अवतरण
समय के उस पार
खड़ी थीं तुम
मैं समय के इस पार था
बीच हमारे
नभ-वितान अपार था
तुम थीं
उस लोक की वासी
मैं इस लोक में प्रवासी
बीच हमारे
बस स्नेह-दुलार था
तुम गगन
रति-मति की अवतार
मैं अनिल
हठी-गति का विस्तार
बीच हमारे
अब अलंघ्य पहाड़ था
1997 में रचित