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याद तुम्हारी आती है / प्रतिभा सक्सेना
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जब पलकें झपका कर नभ में तारे हँसते,
तब मेरे मन को याद तुम्हारी आती है !
जब झूम-झूम उठते फूलों के दल के दल ,
मधुमय वसन्तश्री राग लुटाती आती है
गुन-गुन के गुंजन में वन की डाली-दाली
,सौरभ मधु से मधुपों की प्यास मिटाती है ,
अमराई की डालों से उठती कूक पिकी की आकुलता
तब मेरे मन को याद तुम्हारी आती है !
जब किसी द्वार पर अपनी झोली फैला कर ,
कोई अंधा भिक्षुक जिसका घर-बार नहीं ,
गा उठता कोई करुण मधुर संगीत
कि दाता जो देदे वह होगा अस्वीकार नहीं !
अभिमानी मन का मान डोल उठता है जब ,
तब मेरे मन को याद तुम्हारी आती है !