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प्रिया प्रसाद / घनानंद

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राधा राधा राधा कहौं ।
कहि कहि राधा राधा लहौं ॥१॥

राधा जानौं राधा मानौं ।
मन राधा रस ही मैं सानौं ॥२॥

राधा जीवन राधा प्रान ।
राधा ही राधा गुनगान ॥३॥

राधा वृन्दावन की रानी ।
राधा ही मेरी ठकुरानी ॥४॥

राधा व्रज जीवन की ज्यारी ।
राधा प्राननाथ की प्यारी ॥५॥

राधा राधा राधा एक ।
सर्वोपर राधा हित टेक ॥६॥

राधा अतुलरूप गुनभरी ।
ब्रजवनिता कदंब मंजरी ॥७॥

राधा मदन गुपालहिं भावै ।
मुरली मैं राधा गुन गावै ॥८॥

राधा रस प्रसाद की साधा ।
रसिक राय कैं राधा राधा ॥९॥

या राधा कों हौं आराधौं ।
राधा ही राधा रट साधौं ॥१०॥

राधा वचन, मौन हूँ राधा ।
राधा राधा राधा राधा ॥११॥

सोये राधा, जागे राधा ।
रातिघौस राधा ही राधा ॥१२॥

राधा हेरौं राधा सुनौं ।
राधा समझौं राधा गुनौं ॥१३॥

राधा मेरी स्वामिनि साँची ।
थिर चित ह्वै राधा हित नाची ॥१४॥

राधा जि कछु कहै, सो करौं ।
महल टहल टकोर अनुसरौं ॥१५॥

राधा राधा गीत सुनाऊँ ।
राधा आगें राग जमाऊँ ॥१६॥

राधा कौं बहु भाँति रिझाऊँ ।
तीखी बातनि चोख हसाऊँ ॥१७॥

राधा की चटकीली चेरी ।
चित ही चढ़ी रहित नित मेरी ॥१८॥

राधा रुचि हि लिए ई रहौं ।
विहरत गृह वनगोहन महौं ॥१९॥

रूप उज्यारी राधा देखौं ।
भागन को सुख कहा बिसेखौं ॥२०॥

राधा सबही भाँति लड़ाऊँ ।
राधा रीझें राधा पाऊँ ॥२१॥

राधा सो कछु कहौं कहानी ।
परम रसीली अति मनमानी ॥२२॥

चाँपत चरन तनक झुकि जाऊँ ।
हुवै सीस राधा के पाऊँ ॥२३॥

चरन हलाय जगाये जागौं ।
बहुरि औंधि नित पाय ना लागूँ ॥२४॥

राधा धर्यौ बहुगुनी नाऊँ ।
टरि लगि रहौं बुलाये जाऊँ ॥२५॥

राधा की जूठनि ही जियैं ।
राधा की प्यासनि ही पियैं ॥२६॥

राधा को सुख सदा मनाऊँ ।
सुख दै दै हौं हूँ सुख पाउँ ॥२७॥

राधा ढिग जब श्याम निहारौं ।
समय उचित सुख टहल विचारौं ॥२८॥

राधा पिय पै विजना ढोरौं ।
श्रम जल सुखऊँ, मन रस बोरौं ॥२९॥

पियमय ह्वै प्यारी हित पा लौं ।
ललना लाल परस पर लालौं ॥३०॥

राधा मोहन एकै दोऊ ।
नैन प्रान मन प्रेम समोऊ ॥३१॥

राधा हि लग कहत नहिं आवै ।
मोहन की राधा रुचि पावै ॥३२॥

राधा मोहन मोहन राधा ।
हिलनि मिलनि विहरनि बिनु बाधा ॥३३॥

राधा प्रेम रसामृत सरसी ।
केलि कमल कुल सुषमा दरसी ॥३४॥

राधा मन मैं मन दैं रहौं ।
राधा के मन की सब लहौं ॥३५॥

राधा को स्वभाव पहिचानौं ।
राधा की रुचि रचना ठानौं ॥३६॥

राधा मन की मोसों बोलैं ।
गुपत गाँस अपनी रुचि खोलैं ॥३७॥

हौं राधा की, राधा मेरी ।
कीरति की घर जाई चेरी ॥३८॥

राधा की मन भाव तिलौंडी ।
राधा की आनंदनि औंड़ी ॥३९॥

राधा चीर उतारन पाऊँ ।
भाग बड़ाई कहा जनाऊं ॥४०॥

राधा मोकर पाय झवावै ।
भाग भरी महावरो घावै ॥४१॥

राधा कौं हौंसनि हौं प्यारी ।
जाते तन कौं करति न न्यारी ॥४२॥

लालबिहारी हूँ सौं ऐड़नि ।
राधा के गुमान की पैड़नि ॥४३॥

उसरि भरौं हित ढरौं अंग सौं ।
करौं टहल रसमसी रंग सौं ॥४४॥

अड़े दाय कौ काय परै जब ।
बिन बहुगुनी सवारै को तब ॥४५॥

मेरौ सुख हौही भर देखौं ।
राधा कौ सुख अंतर लेखौं ॥४६॥

लिखौं सुख, जब जब मुख देखौं ।
राधा कौं सुख कहा बिसेखौं ॥४७॥

राधा कौ सुख मेरो सुख है ।
मदन गुपाल निहारै मुख है ॥४८॥

वेरी, पै अभिमान भरी हौं ।
ठकुराइनिया भाँति करी हौं ॥४९॥

राधा की बलिहार भई हौं ।
राधा यौं अपनाय लई हौं ॥५०॥

राधा बिन कछु और न सूझौं ।
सुरझि सुरझि अभिलाष उरुझौं ॥५१॥

राधा आँखिन आगे रहै ।
राधा मन कौ मारग गहै ॥५२॥

रोम रोम राधा की व्यापनि ।
रसिक जीवनी राधा जापनि ॥५३॥

राधा रटि सोई ह्वै जाऊँ ।
तब पाऊँ राधा को गाऊँ ॥५४॥

राधा बरसाने की जाई ।
ह्वै सँकेत नंदी सुर आई ॥५५॥

राधा की हौं कहौं कहा लौं ।
ब्रजबन राधामई जहाँ लौं ॥५६॥

राधा के हित वंशी बाजै ।
राधा राग भरे सुख साजै ॥५७॥

राधा बंसी की ठकुरायनि ।
सुर पावड़े बिछावति चायनि ॥५८॥

नाम गाम सब राधा नेरैं ।
राधा ही के बसौं बसेरैं ॥५९॥

यौ राधा न श्याम बिन रहै ।
मेरे मन मैं राधा महै ॥६०॥

या राधा की महा अगमगति ।
प्रेम पुंज मतिवती परम रति ॥६१॥

या राधा कौ प्रेम कहै को ।
या राधा कौ नेम गहै को ॥६२॥

राधा रमन रमन हू राधा ।
एकमेक ह्वै रहे अबाधा ॥६३॥

मिलन बिछोह कछु न सुधि परैं
अचिरज रीति राधिका धरैं ॥६४॥

या राधा कौ रस अपरस है ।
रस मूरति कौ परम सरस है ॥६५॥

दोहा
कहिबो सुनिबो समझिबो राधा ही कौ होय ।
राधा के हित की कथा भूलि सुमिरिहै सोय ॥६६॥

राधा अकथ कथा कहौं, यह कहिबे की नाहिं ।
राधा के जिय की दसा प्रीतम के हिय माहिं ॥६७॥

व्रजमोहन आनंदघन, वृंदावन रसधाम ।
अभिलाषनि बरसत रहै, राधा हित अभिराम ॥६८॥

मधुर केलि रस-झेलि सों, रसना स्वाद सुरूप ।
सुफल सुवानी वेलि को, राधा नाम अनूप ॥६९॥

मेरे मन दृग रीझि की, राधा ही कों बूझि ।
राधा के मन रीझि की, मोहिं बूझि अरु सूझि ॥७०॥