दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 51
दोहा संख्या 501 से 510
प्रभु तें प्रभु गन दुखद लखि प्रजहिं सँभारै राउ।
कर तें होत कृपानको कठिन घोर घन घाउ।501।
व्यालहु ते बिकराल बड़ ब्यालफेन जियँ जानु।
वहि के खाये मरत हैं वहि खाए बिनु प्रानु ।502।
कारन तें कारजु कठिन होइ देासु नहिं मोर।
कुलिस अस्थि तें उपल तेें लोह कराल कठोर।503।
काल बिलोकत ईस रूख भानु काल अनुहारि।
रबिहिं राउ राजहिं प्रजा बुध ब्यवहरहिं बिचारि।504।
जथ अमल पावन पवन पाइ कुसंग सुसंग।
कहिअ कुबास सुबास तिमि काल महीस प्रसंग।505।
भलेहु चलत पथ पोच भय नृप नियोग नय नेम।
सुतिय सुभूपति भूषिअत लोह सँवारित हेम।506।
माली भानु किसान सम नीति निपुन नरपाल।
प्रजा भाग बस होहिंगे कबहुँ कबहुँ कलिकाल।507।
बरसत हरषत लोग सब करषत लखै न कोइ।
तुलसी प्रजा सुभाग ते भूप भानु सो होइ।508।
बरसत हरषत लोग सब करषत लखै न कोइ।
तुलसी प्रजा सुभाग ते भूप भानु सो होइ।508।
सुधा सुनाज कुनाज फल आम असन सम जानि।
सुप्रभु प्रजा हित लेहिं कर सामादिक अनुमानि।509।
पाके पकए बिटप दल उत्तम मध्यम नीच।
फल नर लहैं नरेस त्यों करि बिचारि मन बीच।510।