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नामविश्वास / तुलसीदास/ पृष्ठ 12

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कलि वर्णन-3

 
(87)

दमु दुर्गम, दान, दया , मख, कर्म , सुधर्म अधीन सबै धनको।
तप, तीरथ , साधन, जोग, बिरागसों होइ , नहीं दृढ़ता तनको।।

कलिकाल कराल में ‘राम कृपालु’ यहै अवलंबु बडो मनको।।
‘तुलसी’ सब संजमहीन सबै, एक नाम -अधारू सदा जनको।।

(88)
 
पाइ सुदेह बिमोह-नदी-तरनी न लही, करनी न कछू की।
 रामकथा बरनी न बनाइ, सुनी न कथा प्रहलाद न ध्रुवकी।।

अब जोर जरा जरि गातु गयो, मम मानि गलानि कुबानि न मूकी।
नीके कै ठीक दई तुलसी, अवलंब बड़ी उर आखर दूकी।।