भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मारना / उदय प्रकाश

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:56, 26 फ़रवरी 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आदमी

मरने के बाद

कुछ नहीं सोचता.


आदमी

मरने के बाद

कुछ नहीं बोलता.


कुछ नहीं सोचने

और कुछ नहीं बोलने पर

आदमी

मर जाता है.