भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली अरण्यकाण्ड पद 11 से 15/पृष्ठ 4
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:27, 5 जून 2011 का अवतरण
(14)
नीके कै जानत राम हियो हौं |
प्रनतपाल, सेवक-कृपालु-चित, पितु पटतरहि दियो हौं ||
त्रिजगजोनि-गत गीध, जनम भरि खाइ कुजन्तु जियो हौं |
महाराज सुकृती-समाज सब-ऊपर आजु कियो हौं ||
श्रवन बचन, मुख नाम, रुप चख, राम उछङ्ग लियो हौं |
तुलसी मो समान बड़भागी को कहि सकै बियो हौं ||