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म्हारो बीकाणो / हरीश बी० शर्मा

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रै‘कारै री गाळ रो
रजपूती रातो रंग,
हिरमिच रंग्या बुरजां री ललाई
जदै उडी।
नागणियां ज्यूं कांई लटकै।
अर कठै फोड़-फोड़ कब्जायति
एक्सटेन्सन कर लियो है सै‘र रो
पाटा माथै बातां सूं छोटी रातां रो
समै भळै निसर्यो
पण निरदोस मन आज भी मां-बैन टाळ‘र
बात करै कोनी
पिछाणै है थारै बाप नैं।
तीन धड़ा बन्द हुया बाद ही
लोगां नैं कमावण री लत लागी है
कईयां नैं आज ही ठाकुर जी
बैठा घालै है।
पण थापी, पीक अर भायलां माथै फिरता उस्तरा
दतर में हाजरी‘ज लगावै।
अफसरां नैं सांमी मूंढै भळै सन्मान दे दै
परपूठ तो सुर बदळै ही है।
आज तांई म्हारै जांगळ देस रा हुंसियार
फाईफीटा व्है है।
जे बडै सैरां में जा परै तो
आकळ-बाकळ हुय जावै है
कळकत्ता बम्बई कांईं
जैपर भी परदेस है
म्हारो बीकाणो आज ई
जैकारा करै जद
लोकतंत्र अर समाजवाद पाणी-पाणी हुय जावै है
आजाद भारत सूं म्हानैं कांईं लेणो-देणो
अजगर री चाकरी
अर पंछी रै काम रो हिमायती
सै‘र म्हारो
आज थकां
रोज बदळीजतै प्रधानमंत्री
अर भोग्यौड़ै राष्ट्रपति सासन रै
कारण सूं अणजाण है
भोळै जीवां रो देस
म्हारो बीकाणो
सियाळै, उनाळै अर सावण
तीनूं में मोकळो रै है।
जी भर‘र तीनं रूत
आवै है, जावै है
मस्त मलंगां री
जिनगाणी
कठै फोड़ा पावै है
जिण ढाळै प्रकृति
सुभाव ढाळ ले है
बीकाणो जूनो
अर जूनो हुंवतो जावै है।