भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ताख़ / स्वप्निल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:50, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


पुराने ताख़ पर रखी हुई है

नई दियासलाई


अंधेरा होते ही इसे

खोजने लगते हैं हाथ


एक तीली लालटेन को

जलाती है

दूसरी रसोईघर की ढिबरी को

आलोकित करती है

तीसरी अलाव जलाने के

काम आती है


लेकिन वहाँ अंधेरा रहता है

जहाँ यह रखी हुई रहती है