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आत्मकथा / अरुण कमल
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न लेखक गृह का एकान्त
न अनुदान वृत्ति का अभ्यास
जितनी देर में सिंझेगा भात
बस उतना ही है अवकाश ।
चलते चलते डालनी चप्पल
गिरते हँफ़ते उठाना राग,
ख़ड़े मंच पर पात्र तैय्यार
शेष अभी लिखना सम्वाद ।
कैसे सिल पर घिसूँ जायफ़ल
तेल ठोप भर, ज़्यादा गाद ।