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मांगत / अर्जुनदेव चारण
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औजार मत दै
वे नीं खोलै मन रा भेद
हथियार मत दै
नीं जांणै जोड़ण री अटकळ ।
खुद नै देखूं
जीवूं
समझूं
रीस-हार रा उछब मनावूं
हेत-प्रीत में म्हैं गम जावूं
मिनखीचारै नै बिड़दावूं
एक कवि दै
मिनख छवि दे ।