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मैं जीवन हूँ / निदा फ़ाज़ली

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वो जो
फटे-पुराने जूते गाँठ रहा है
वो भी मैं हूँ |

वो जो घर-घर
धूप की चाँदी बाँट रहा है
वो भी मैं हूँ |

वो जो
उड़ते परों से अम्बर पात रहा है
वो भी मैं हूँ |

वो जो
हरी-भरी आँखों को काट रहा है
वो भी मैं हूँ |

सूरज-चाँद
निगाहें मेरी
साल-महीने राहें मेरी |

कल भी मुझमे
आज भी मुझमे
चारों ओर दिशाएँ मेरी |

अपने-अपने
आकारों में
जो भी चाहे भर ले मुझको |

जिनमे जितना समा सकूँ मैं
उतना
अपना कर ले मुझको |

हर चेहरा है मेरा चेहरा
बेचेहरा इक दर्पण हूँ मैं
मुट्ठी हूँ मैं
जीवन हूँ मैं |