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तेरा मेरा मनुवां / कबीर

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तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे ।


मै कहता हौं आँखन देखी, तू कहता कागद की लेखी ।

मै कहता सुरझावन हारी, तू राख्यो अरुझाई रे ॥


मै कहता तू जागत रहियो, तू जाता है सोई रे ।

मै कहता निरमोही रहियो, तू जाता है मोहि रे ॥


जुगन-जुगन समझावत हारा, कहा न मानत कोई रे ।

तू तो रंगी फिरै बिहंगी, सब धन डारा खोई रे ॥


सतगुरू धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे ।

कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे ॥