भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जगत विदित बैद्यनाथ / विद्यापति
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:25, 26 सितम्बर 2012 का अवतरण
जगत विदित बैद्यनाथ, सकल गुण आगर हे !
तोहें प्रभु त्रिभुवन नाथ, दया कर सागर हे !
अंग भसम सिर अंग, गले बिच विषधर हे !
लोचन लाल विशाल, भाल बिच शशिधर हे !
जानि शरण दीनबन्धु, शरण धय रहलहूँ हे !
दया करू मम प्रतिपाल, अगम जल पड़लहूँ हे !