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माँ / अरविंदसिंह नेकितसिंह
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माँ
मैं नास्तिक तो नहीं
फ़िर भी आज
बाध्य हूँ
तुझसे तुझ पर प्रश्न चिह्न लगाने को ।
तुझे देख उठती नहीं भक्ति
क्योंकि तू
बन गई है
धन-वैभव
समृद्धता को
दिखावे का साधन
मस्तिष्क में कहीं
गढ़ी है अब भी
वह चित्र तेरा
जब न थी
चकाचौंध या सजावटें
एक नारियल, एक चन्दन,
दो बूँद पानी, दो बूँद चाँक, दो बूँद दूध,
चार जनों में आप का गुणगान
और रोंगतों का उठना
पर अब जाने क्यों...
तिलमिलाती बल्बों और लाउदस्पीकरों के गूँज में भी
तू नहीं दिखती
क्या तू भी...