भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ / अरविंदसिंह नेकितसिंह

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:20, 10 दिसम्बर 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ
मैं नास्तिक तो नहीं
फ़िर भी आज
बाध्य हूँ
तुझसे तुझ पर प्रश्न चिह्न लगाने को ।

तुझे देख उठती नहीं भक्ति
क्योंकि तू
बन गई है
धन-वैभव
समृद्धता को
दिखावे का साधन

मस्तिष्क में कहीं
गढ़ी है अब भी
वह चित्र तेरा
जब न थी
चकाचौंध या सजावटें
एक नारियल, एक चन्दन,
दो बूँद पानी, दो बूँद चाँक, दो बूँद दूध,
चार जनों में आप का गुणगान
और रोंगतों का उठना

पर अब जाने क्यों...

तिलमिलाती बल्बों और लाउदस्पीकरों के गूँज में भी
तू नहीं दिखती
क्या तू भी...