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ख़्वाब / पवन कुमार

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ख़्वाब शीशे के टुकड़े हैं
टूटते हैं तो
पलकें लहूलुहान हो जाती हैं
मैं इस डर से कभी
आँखों में ख़्वाब
नहीं
सजाता हूँ।