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बहुत कुछ कहाइल / पाण्डेय कपिल
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बहुत कुछ कहाइल,बहुत कुछ लिखाइल
मगर बात मन के कबो न ओराइल
लिखाइल भले बात हिरदय से अपना
मगर ऊ लिखलका कबो न पढ़ाइल
हमरा देक्ज के ऊ नज़र फेर लिहले
पहुँचली जबे हम उहाँ पर धधाइल
बताईं ना, कइसे ऊ मन से हटाईं
सहज रूप उनकर जे मन में समाइल
कहाँ बाटे फुर्सत की सोचत करीं हम
इहाँ रोजी-रोटी के दँवरी नधाइल.