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मौसम बउराइल बा / ब्रजभूषण मिश्र

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थरथरात दसो दिसा, रितु तवन आइल बा।
पगलाइल पछेया आ मौसम बउराइल बा॥
एह साल हरसिंगार रो-रो के झर गइल।
देखी वसंत फेर आवे से डर गइल॥
लाल गाल फगुआ के खून से पोताइल बा।
पगलाइल पछेया आ मौसम बउराइल बा॥
धू-धू जरे सगरो गाँव-घर भइल मसान।
एक दुअरा, ओह अंगना अखरेरे जाए प्रान॥
चउपाली कउड़ा पर जिनगी बोझाइल बा।
पगलाइल पछेया आ मौसम बउराइल बा॥
इहवाँ हर गाछी पर बा बसेर प्रेतन के।
फाटल दरार हाल सोख गइल खेतन के॥
सूखल सरोवर, कमल-दल मउराइल बा।
पगलाइल पछेया आ मौसम बउराइल बा॥
खुसाइल भोर काहे भैरवा अलापेला?
हँसुआ बिआह, गीत खुरपी ना भावेला॥
जइसे हर कुइयाँ में भंगिया घोराइल बा।
पगलाइल पछेया आ मौसम बउराइल बा॥