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कठी स्य़ूं आयो बटाऊ / राजेन्द्र स्वर्णकार
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बोल ! कठी स्य़ूं आयो बटाऊ
कीं खातर के ल्यायो बटाऊ
छींया बैठ, कीं पून खाय़लै
लागै कीं तिरसायो बटाऊ
छाछ राब पाणी कीं लेयल्यै
भूखो है का धायो बटाऊ
माया मुनवारां मुळ्क्यां में
रींझ घणो हरखायो बटाऊ
भूल्भुळावां मांय अळूझ्यो
ठौड-ठौड बिलमायो बटाऊ
बिसरियो कीं घर, कीं सूं मिलणो
घर - घर गोता खायो बटाऊ