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क्षुद्र की महिमा / श्यामनन्दन किशोर

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शुद्ध सोना क्यों बनाया प्रभु मुझे तुमने,
कुछ मिलावट चाहिए गलहार होने के लिए।

जो मिला तुममें, भला क्या
भिन्नता का स्वाद जाने,
जो नियम में बँध गया,
वह क्या भला अपवाद जाने!

जो रहा समकक्ष करुणा की मिली कब छाँह उसको,
कुछ गिरावट चाहिए उद्धार होने के लिए!

जो अजन्मा हैं, उन्हें इस
इन्द्रधनुषी विश्व से सम्बन्ध क्या!
जो न पीड़ा झेल पाएँ स्वयं,
दूसरों के लिए उनको द्वन्द्व क्या!

एक स्रष्टा शून्य को शृंगार सकता है,
मोह कुछ तो चाहिए साकार होने के लिए!

क्या निदाध नहीं प्रवासी बादलों से
खींच सावन-धार लाता है!
निर्झरों के पत्थरों पर गीत लिक्खे
क्या नहीं फेनिल, मधुर संघर्ष गाता है!

हैं अभाव जहाँ, वहीं हैं भाव दुर्लभ
कुछ विकर्षण चाहिए ही प्यार होने के लिए!

(23.9.1974)