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जीवन की जंग / राजा खुगशाल
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मिट्टी और घास की बेजुबान दुनिया में
बैलों की घंटियां हैं
चारागाह और घरौंदे हैं बचपन के
भूख से पुराना परिचय है उसका
विरासत में मिले दुखों की छाया को
जन्म से जानता है वह
सदी के सातवें दशक की हिकारत में
पाठशालाएं बंद-सी थीं उसके लिए
वरना वह भी पहुंच सकता था भाषा तक
सक्रिय शब्दों में कह सकता था
अपने समय को
भविष्यम के नाम पर सिर्फ
नगाड़े बजते रहे सपनों में
काम से लौटकर
जब भी घर आता है वह
माँ कहती है
पीले कब होंगे बहनों के हाथ
पिता कहते हैं
कहीं हिल्ले से लग जाते तुम
तो जीत जाते हम जीवन की जंग।