भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लहरों में हलचल / गोपालदास "नीरज"

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 4 मार्च 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लहरों में हलचल होती है..

कहीं न ऐसी आँधी आवे
जिससे दिवस रात हो जावे
यही सोचकर कोकी बैठी तट पर निज धीरज खोती है।
लहरों में हलचल होती है..

लो, वह आई आँधी काली
तम-पथ पर भटकाने वाली
अभी गा रही थी जो कालिका पड़ी भूमि पर वो सोती है।
लहरों में हलचल होती है..

चक्र-सदृश भीषण भँवरों में
औ’ पर्वताकार लहरों में
एकाकी नाविक की नौका अब अन्तिम चक्कर लेती है।
लहरों में हलचल होती है..