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बबन विधाता / दीनदयाल शर्मा

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बबन विधाता लेके छाता,
निकल पड़े बरसात में।
फिसले ऐसे गिरे जोर से,
कैसे चलते रात में।

कीचड़ में भर गए थे कपड़े,
देखे बबन विधाता।
इसी बीच में उड़ गया उनका,
रंग-बिरंगा छाता।

उड़ते-उड़ते छाता उनका,
पहुंच गया नेपाल।
बबन विधाता भीग गए सारे,
हो गए वे बेहाल।

चला हवा का झोंका उल्टा ,
वापस आ गया छाता।
तान के ऊपर चल दिए अपने,
घर को बबन विधाता।।