भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मरने से क्या डरना / काका हाथरसी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:17, 18 सितम्बर 2014 का अवतरण
नियम प्रकृति का अटल, मिटे न भाग्य लकीर।
आया है सो जाएगा राजा रंक फ़कीर॥
राजा रंक फ़कीर चलाओ जीवन नैय्या।
मरना तो निश्चित है फिर क्या डरना भैय्या॥
रोओ पीटो, किंतु मौत को रहम न आए।
नहीं जाय, यमदूत ज़बरदस्ती ले जाए॥
जो सच्चा इंसान है उसे देखिये आप।
मरते दम तक वह कभी करे न पश्चाताप॥
करे न पश्चाताप, ग़रीबी सहन करेगा।
लेकिन अपने सत्यधर्म से नहीं हटेगा॥
अंत समय में ऐसा संत मोक्ष पद पाए।
सत्यम शिवम सुन्दरम में वह लय हो जाए॥
जीवन में और मौत में पल भर का है फ़र्क।
हार गए सब ज्योतिषी फेल हो गए तर्क॥
फेल हो गए तर्क, उम्र लम्बी बतलाई।
हार्ट फेल हो गया दवा कुछ काम न आई॥
जीवन और मौत में इतना फ़र्क जानिए।
साँस चले जीवन, रुक जाए मौत मानिए॥