भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा, तुम्हारा, हमारा प्रेम / आयुष झा आस्तीक
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:22, 19 जनवरी 2015 का अवतरण
नदी में बंसी पटा कर
तरेला डूबने तक के
अंतराल में
उत्पन्न ऊब है
तुम्हारा प्रेम।
और तरेला डूबने से
बंसी को अपनी ओर
खींचने की फूर्ती था
मेरा प्रेम।
मैं रोहू, कतला, बूआरी को
नदी से निकाल कर
धत्ता पर
पटकता रहा।
और तुम प्रेम को
आटे में सान कर
नदी में बहाती रही।
हाँ हाँ
कितना अजीब है ना !
कि गरई मछली को
सौराठी माछ समझने का
वहम था
तुम्हारा प्रेम।
सच तो यह है कि
जाड़े में
मूसलधार बारिश होने के जैसा
इत्तफाक था
हमारा प्रेम।
और
इस बेवक्त बरसात को
मानसून समझने का
जो भूल किया हमने
उस भूल के गर्भ में
छुपी हुई
मासूमियत था
मेरा प्रेम।