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संजीवणी मंतर / राजू सारसर ‘राज’

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सबदां री स्याई नैं
सांचोड़ी मिठास रो
रंग देय ’र
थूं मांड
म्हारै हिवडै़ माथै
रसभीणी, रंगसीळी
नवीं बातां।
अरथ नीसरै,
जे भावनावां बण ’र
तो बिना कागद
उतर सकै
हिवड़ै माथै गै ’रागै ’रा
बेद सासतर
उपनिसद अर पुराण
सगळी विद्यावां विधावां।
सबद सूं
नीं होवै सगती अळगी
पण बोलणियै रै, पांचूं तत रौ
सांचो संजोग हुवै,
जणा ई
लिखीजै काळ पानडंा माथै
कोई सबद संजीवणी मंतर।