भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जूण जंजाळ री / संजय पुरोहित
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:18, 28 नवम्बर 2015 का अवतरण
निरख‘र मुरझाऊं
नीं समेट पाऊं
खण्ड खण्ड खिण्डयोळै
वजूद ने म्हारै
पिछाण गुम अंतस अंधारौ
अर विचारां मांय घमसाण
लीर लीर जिनणी
निजर बिन चितराम
तळै बैठी आतमा
हाका करती काया
मुंडौ बणावंती चींत
पसरती छिब
तो कीं म्हैं
जी रैयो हूं
जूण जंजाळ री ?
नीं
नीं जीणौ जूण इण भांत
म्हैं करूं उडीक
सोनलिये सूरज री
लावैलो नूंवो परभात
म्हारै सोच रे आंगणै
आज नीं तो
काल