Last modified on 3 फ़रवरी 2016, at 12:04

प्रार्थना - 14 / प्रेमघन

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:04, 3 फ़रवरी 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुछ कठिनाई की कहौ तो कौन समता है,
करद कटाछन की काट किहि तौर है।
मृदु मुसुक्यानि की मजा औ माधुरी अधर,
पिय को सजोग सुख और किहि ठौर है॥
प्रेमघनहूँ को त्यों पियूष वर्षा विनोद,
अनुभव रसिक बिचारैं करि गौर है।
रहनि सहनि सुमुखीन की सुजैसैं और,
वैसैं सुकवीन की कहनि कछु और है॥