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आलिंगन / रति सक्सेना
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आलिंगनः खत की आखिरी पंक्ति
आलिंगनः मैंने पढ़ा, पहली पंक्ति की तरह
भाल के ऐन ऊपर सिरे के बीचो- बीच
सुलग उठा एक सिरा नीन्द का
आलिंगनः दर्द जाग उठा
आलिंगनः नीन्द बुदबुदाई
आलिंगनः मौत मुस्कुराई
नसनस चटख उठी
मैं खिल उठी कनेर की कली बन