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ये भीड़ किधर जाएगी / हरीशचन्द्र पाण्डे
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देहें सभी की उल्टी लटकी थीं
रक्त सभी के चू रहा था नीचे थाल में
जीभें लटकीं और आँखें पथराई सभी की थीं
रानें सभी की डोल रही थीं हवा में
गोश्त की दुकान और ख़रीदारों की भीड़
किसे माना जाय उल्टे लटके अपने समकालीनों में सबसे
बेहतर
किसी की आँखें बड़ी हैं किसी की रानें
और किसी के शुक्र कोष
ये भीड़ किधर जाएगी?