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दिन से लंबा ख़ालीपन / कुँअर बेचैन
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नींदें तो
रातों से लंबी
दिन से लंबा ख़ालीपन
अब क्या होगा मेरे मन?
मन की मीन
नयन की नौका
जब भी चाहे
बीती-अनबीती बातों में
डूबे-उतराए
निष्ठुर तट ने
तोड़ दिए हैं
बर्तुल लहरों के कंगन।
अब क्या होगा मेरे मन?
जितनी साँसें
रहन रखी थीं
भोले जीवन ने
एक-एक कर
छीनीं सारी
अश्रु-महाजन ने
लुटा हाट में
इस दुनिया की,
प्राणों का मधुमय कंचन।
अब क्या होगा मेरे मन।।
-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।