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गरीबा / बंगाला पांत / पृष्ठ - 5 / नूतन प्रसाद शर्मा

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समधी ला कारण पूछेंव मंय, ओहर कुछ नइ दीस जुवाप
अउ दमांद तिर प्रश्न करेंव तब, ओहर फुंफकारिस जस सांप।
खखुवा के फंकट पर बिफड़ेंव – “कहां करे धरमिन ला मोर
सम्मुख लान करव अभि सुपरुत, वरना बना दुहूं गत तोर।”
फंकट बोलिस -”बता तिंही हा – एक वायदा जे कर देस –
मंय हा दुहूं फटफटी तोला, ओला लाने हस का साथ!
तोर पास नइ फुटहा कौड़ी, तब काबर मारे हस डींग
पास मं नइ हरिया अक भुंइया, पूछत पर के कतका खेत!
चालबाज अस तंय सोचत हस – समधी के धन खाहंव लूट
मगर दार हा चुरन पात नइ, तब चहली मतात सब खूंट।
धरमिन हा खुद जीवन ला दिस, रुतो अपन तन माटीतेल
पर तंय बद्दी डारत हम पर, हट जा वरना दुहूं गफेल।”
फंकट धरिस मोर चेचा ला, घर ले बाहिर दीस खेदार
मुड़ ला पटकत उहां ला छोड़ेंव, पहुंच गेंव जे जगह बजार।
हर मनसे के मुंह ले होवत धरमबती के चर्चा।
उंकर बात सुन अइसे लगगिस – परत मोर पर बरछा।
सुनन सकय नइ भिथिया तक हा, नम्मू किहिस कान मं मोर –
“होना रिहिस तेन तो होगिस, अब तंय घिरिया बात जतेक।
घटना ला लइका तक जानत – हतियारा हे तोर दमांद
मगर साक्ष्य ला दिही कोन हा, फंकट रख दिस सब ला बांध।
अगर भूल के बोम मचाबे, तोरेच पर आहय सब कष्ट
असरुहवय बिकट चलवन्ता, राख बनाही जीवन तोर।”
“हे कानून सबो के भल बर, तब काबर होहय अन्याय
सुरुखुरुमंय थाना जावत, मोर दुखी के उंहे हियाव।”
अतका बोल ओ जगहा ला तज, थाना पहुंच गेंव गोहराय
बोलेंव – अत्याचार होय हे, तब मंय आय इहां तक दौड़।
असरुडहर ढुलंग गें सब झन, लेवय कोन मोर अब पक्ष
यदि गोहार ला तुम सुन लेहव, तंहने निश्चय न्याय के जीत।”
थानेदार हा मोला घूरिस, किहिस बाद मं डारा मार –
“तोर टुरी हा मरिस जेन छन, चिरई घलो नई रिहिस मकान।
संकरी लगा – भितर घर मं घुस, धरमिन आत्मघात कर लीस
निरपराध हें फंकट असरु, तंय झन बढ़ा व्यर्थ के बात।
मंय फंसाय बर यत्न करे हंव, मगर प्रमाण हाथ नइ अै स
आखिर प्रकरण ला खारिज कर, लहुट गेंव चुप उल्टा पांव।”
मंय अड़बड़ करलई करेंव तंह, थानेदार भड़क गिस जोर
तंहने छाती पर पथरा रख; लहुटेंव मुढ़ीपार के खोर।”
दुखी पुसऊ ला दीस सांत्वना, फेर गरीबा बोलिस सोच –
“लगथय – सबल धनी मन खाहंय, हिनहर के ओद्दा तन नोच।
सब तन इहिच कथा ला सुनथंव – मनसे ला जेवत इन्सान
दाइज दानव हा छुछुवावत, अब नइ बांचय जीयत प्राण।
जब मंय एकर अंदर घुसथंव, दिखत नदानी स्वयं हमार
एक खात धोखा तब दूसर, बत्तर अस देवत हे नेम।
थोथना भार गिरत हन भर्रस, तंहने चेत लहुटथय खूंट
ऊंट जहां जंगल पर चढ़थय, ओकर भरभस जाथय टूट।
घरमिन के शादी जोंगे हस बोर के खुद के पूंजी।
दूध – दूहना दुनों फूटगें गोभत दुख के सूजी।
जुगनू – सुरुज एक नइ होवंय, अन्तर होथय अन्धनिरन्ध
सब रहस्य ला जान के काबर, असरुसंग बनाय सम्बन्ध!
धरमिन ला सुख पाहय कहि के, फंकट ला तंय लड़की देस
लेकिन यहू बात ला जानत – धरती नभ होवंय नइ भेंट।
पुचकट लछनी बचे हवय अभि, ओकर कइसे निभिहय ब्याह
पूंजी पसरा राह पकड़ लिस, टोर भला अब खुद के न्याय?”
धर के मुड़ी बइठ के उखरु, सुनत पुसऊ हा धर के ध्यान
कहिथय -”सोला आना सत्तम, होगिस खतम मोर अभिमान।
एक बिहाव मं नसना टूटिस, जतका अस धन जमों खुवार
लछनी के शादी अब मुश्किल, जीवन मोर होत धिरकार।”
जइतू बोलिस -”फिक्कर झन कर, हिम्मत अंड़ा बढ़ा तंय गोड़
धीरज – कर्म साथ यदि होवत, मनसे जीत जथय सब होड़।
लछनी के शादी जब होहय, तब झन करबे वर के छांट
नेक व्यक्ति अउ बंहाबली संग, जोर सकत वैवाहिक गांठ।
यदि बसुन्दरा तभो फिकर नइ, पर आदत मं निश्छल साफ
बिपत देख झन घबरा जावय, अइसन वर ला पहिली देख।
हम उपदेश कहां ले देवन, उमर मं हम अन लइका तोर
तंय जग के सब भेद ला जानत, अनुभव तक मं कुबल सजोर।”
बुजरुक खिघू बहुत ला सुनथय, तंहने बफल के बोलिस सजोर-
“अतिक बखत ले तोर सुने हंव, अब तुम सुनव बात ला मोर।
तुम्मन आजकल के टूरा, बड़बड़ात बादर अस खूब
लेकिन मदद करे ले भगथव, जइसे नंदा जथय बन दूब।
खुद ला बड़ ज्ञानिक बोलत हस, बुजरुक ला देवत उपदेश
अगर बिपत ला हरना होहय, तंहने घुसड़ जहय सब टेस।
न्यायालय सच निर्णय देतिस, दैनिक सत्य बतातिस सोध
तब फिर काकर गरज परे हे – इनकर डंट के करय विरोध!
तंय हा चाहत देश के उन्नति, मगर विचार होय नइ पूर्ण
जलगस जनता कष्ट भोगिहय, कोदई समान छरा के चूर्ण।”
खिघू एल्ह के ताना मारिस, तंह जइतू ला चढ़गे खार
यद्यपि मनसे नींद ला भांजत, मगर चढ़त बिच्छी के झार।
पूछिस -”काबर कहत बिस्कुटक, साफ बात ला सब तिर फोर
अपन शक्ति भर मदद ला देहंव, मोर पांव पाछू नइ जाय।”
धांधिस खिघू -”अगर राजू हस, लछनी संग कर लेव बिहाव
पुसऊ के फिक्र खतम चुर्रुस ले, ओकर जीवन नव उत्साह।”