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गळगचिया (37) / कन्हैया लाल सेठिया

नानकी री मा कयो-आज आखा तीज है, नानकी रो नाक बिंदादयो सोनै री बाळी पिरास्यूं।
नानकी रो दादो सुण र बोल्यो-भली याद लिराई टोडियै रो नाक ही बिंदवाणूं हो। चाँदी री गिरवाणाँ करायोड़ी पड़ी है।
थोड़ी ताळ पछै ही नानकी सुनार कनैं बैठी कान बिंधवावै ही-सारै ऊभी नानकी री मा कयो-पीड़ हुवै तो रोई जे मत तनैं सोनै री बाळी पिरा देस्यूं ! कनैं ही बाखळ में गोडा बाँध‘र पटक्योड़ो टोडियो नाक बिंधावतो पीड़ स्यूँ कोजो अरडावै हो। सारै ऊभी सांढ़णी (टोडियै री मा) आ कही जकी तो देखी‘क तनै चाँदी री गिरबाणाँ पिरासी उल्टी टोडियै स्यूँ ही घणी अरडाण लागगी !