भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मौत के नाखून / शम्भु बादल

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:04, 6 अप्रैल 2011 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मौत के कितने नाखून
कितनी गहराई तक
धँसे हैं मेरे सीने में!

दर्द की कैसी कैसी नदियाँ
टहल रही हैं होंठों पर
अपने तमाम मगरमच्छों के साथ !

और तुम
अपनी हँसी की तलाश में
मेरा चेहरा रौंद रहे हो !?