भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिनखपणो / विनोद कुमार यादव

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:34, 9 जून 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कदै ई
लोग जींवता
आन-बान-स्यान सारू
अब चावै
ऑनर किलिंग
जिण सूं बचै
मन रो मान।

कदै ई मानता
देही अर जीव
देन है परमेसर री
अब कानून बतावै
देही अर जीव रो मालक
माणस खुद है
जीवै तो जीवै
नीं जीवै तो
नीं जीवै !

कदैई मानता
जोड़ा बणावै परमेसर
मायत तो बिचोलिया है
अब कोनीं फोड़ो
खुद बणावै
जोड़ा जोड़ो !

सोचूं
अब कांई काम री
बै किताबां
जकी रचीजी
मिनखपणो रचणसारू !