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राम-लीला गान / 30 / भिखारी ठाकुर

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प्रसंग:

श्रीराम सहित सीताजी के विवाह के बाद मिथिला की नारियों द्वारा चुमावन तथा हँसी-मजाक का वर्णन।

चउका पर अवध बिहारी; राम-राम, हरे-हरे।
दुलहा चार साथ दुलहिन चारी, चुमवन करत सब नारी; राम-राम, हरे-हरे।
पहिले से धिरवति सरहज-सारी, कोहबर के रोकब दुआरी; राम-राम, हरे-हरे।
सासु कहति बड़ भाग हमारी, दाया भइल सरकारी; राम-राम, हरे-हरे।
नामरतन के जोगवनिहारी, भूलऽ मत कहत ‘भिखारी’, राम-राम, हरे-हरे।

बार्तिक:

त्रेता-युग में रामचन्द्रजी ताड़का-सुबाहु-मारीच के मार के जनकपुर में धनुष तोड़लन हाँ, तदपि परशुराम जी के रेकार कहलन हाँ ‘रामचरित मानस’।

चौपाई:

हँसत देखि नख शिख रिस ब्यापी, राम तोर भ्राता बड़ पापी।