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कहां छुपा है साहस / कविता पनिया
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कहाँ छुपा है साहस
साहस यह कहाँ छुपा है?
भीतर, कितने भीतर और कहाँ?
लगा जैसे निकल आने को आतुर हो
प्रतीक्षा करूँ,
या निकालू बाहर
साहस जो प्रेरित करता है
साहस जो उत्साहित करता है
उन पगों को
जो कतराते हैं आगे बढ़ने से,
जो रुकते हैं मंजि़ल से पहले,
साहस खींच ले जाता है
उस उगते पौधे -सा,
जो बीजांकुर से फूट धरती को,
चीरता है
साहस जो तटिनी -सा,
जो बहा ले जाती है
स्वयं को सिंधु की अपार बाँहों में,
साहस जो अंधकार में प्रकाश की,
एक धूमिल सी लकीर -सा,
खिंचा चला जाता है
उन अनंत चापों -सा,
जिसके अाने की आहट,
निकाल देती है
उस निष्क्रियता ,
के खोल से जिसे ओढ़,
काल परिवर्तन की प्रतीक्षा में,
सदियां गुजार रहा हो कोई उन्मादी,
साहस यह कहाँ छुपा है?
भीतर कितने भीतर और कहाँ?