भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चांद / कृष्णदेव प्रसाद

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:17, 11 अप्रैल 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कार कार हइ पहाड़ की हइ बदरिया करिया ॥1॥

लहसे ललित रतनजोत
नयन सुखित मुदित होत
हाय छिनहि में भेल इलोत
तान के कार चदरिया ॥2॥

फट रे बादर हंट पहाड़
जोति! जोति! मुंह उघार
फिर जगत में दे पसार
अप्पन सुखद इंजोरिया ॥3॥