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पद-रज हुई / इसाक अश्क

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पद-रज हुई
गुलाल
लगा फिर ऋतु फगुनाई है।

मादल की
थापें हों या हों-
वंशी की तानें
ऐसे में
क्या होगा यह तो
ईश्वर ही जानें
खिले आग के
फूल फूँकती
स्वर-शहनाई है।

गंध-पवन के
बेलगाम
शक्तिशाली झोंके
कौन भला
इनको जो बढकर
हाथों से रोके
रक्तिम
हुए कपोल
दिशा कुछ-यों शरमाई है।