भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिहान ना भइल / हरेश्वर राय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:25, 12 मार्च 2019 का अवतरण
आँख में रात बहुते सयान हो गइल
हमार असरे में जिनिगी जिआन हो गइल I
दिल के दरिया में दर्दे के पानी रहल
देंह जइसे कि भुतहा मकान हो गइल I
आस के डोर टूटल कटल भाईजी
हमरा सपनों में कबहूँ बिहान ना भइल I
हमरा होंठ के बगानी में फूल ना खिलल
मन क चउरा क तुलसी झंवान हो गइल I
सऊँसे जिनिगी कटल उनका इंतजार में
मौत के राह बहुते आसान हो गइल I