भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिन्दगी दो चार दिन / मृदुला झा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:18, 4 मई 2019 का अवतरण (Rahul Shivay ने जिन्दगी दो चार दिनए / मृदुला झा पृष्ठ जिन्दगी दो चार दिन / मृदुला झा पर स्थानांतरित किया)
प्यार के हकदार दिन।
है सियासत का ये फन,
बन गए व्यापार दिन।
वहशियों के दंश को,
रो रहा बेजार दिन।
ज़िन्दगी की नाव का,
बन गया पतवार दिन।
सच का दामन थामना,
चाहता हर बार दिन।
गुरुजनों के नेह का,
मानता आभार दिन।
प्यार जब रुखसत हुआ,
हो गया दुश्वार दिन।