भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उमर छै हो भईया / ब्रह्मदेव कुमार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:17, 2 मई 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बीती गेलै स्कूल के उमर तहियोॅ।
पर पढ़ै-लिखै के आभियो,
उमर छै हो भईया।

तों चाहोॅ तेॅ सुनी लेॅ भैया,
तोरोॅ आगू झुकतौं जहान।
आपनोॅ कोशिश करी केॅ देखोॅ
तहूँ छोॅ गुणोॅ रोॅ खान।
साँझ-विहान आरो रातोॅ बीतै, पर पढ़ै-लिखै के आभियो
उमर छै हो भईया।

तोहीं तेॅ जग के उजियारा
सुनोॅ हो भैया नौजवान।
नै रहियोॅ अनपढ़-गँवार
तोहीं तेॅ छेकोॅ देशोॅ रोॅ शान।
बीतेॅ चाहे देहोॅ के उमर, पर पढ़ै-लिखै के कहियो
उमर नै बीतै छै हो भईया।

शिक्षा ही सबसे बड़ोॅ धोॅन
ई धन सेॅ बड़ोॅ नै कोय।
जे नै पाबै एकरा भैया
ओकरा सेॅ बड़ोॅ मूर्ख नै कोय।
मानोॅ नै मानोॅ हमरोॅ बात, पर पढ़ै-लिखै के आभियो
उमर छै हो भईया।